ट्रंप की जीत के बाद से डॉलर में मजबूती
5 नवंबर को हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की जीत के बाद से डॉलर में तेजी और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी हुई है। इससे उभरते बाजारों की करेंसी पर दबाव बढ़ा है। नवंबर में डॉलर इंडेक्स में 2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। जबकि 10-साल वाले अमेरिकी बॉन्ड की यील्ड जुलाई के बाद सबसे ऊंचे स्तर 4.50% तक पहुंच गई। विदेशी निवेशकों ने नवंबर में भारतीय शेयरों और बॉन्ड से 1.7 अरब डॉलर से ज्यादा की बिकवाली की। यह पिछले महीने के 11.5 अरब डॉलर के आउटफ्लो के बाद है।आरबीआई के हस्तक्षेप ने थामी है गिरावट
फिर भी RBI के हस्तक्षेप के कारण रुपया अपने क्षेत्रीय साथियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। RBI ने स्पॉट, फ्यूचर्स और नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड मार्केट में डॉलर बेचकर बाजार में दखल दिया है। RBI ने बैंकों से रुपये के खिलाफ सट्टेबाजी कम करने को कहा है। साथ ही, बैंकों की विदेशी मुद्रा गतिविधियों पर भी नजर रखी जा रही है। कारोबारियों का मानना है कि RBI रुपये को गिरने से बचाने की कोशिश करता रहेगा। वह रुपये में धीरे-धीरे गिरावट की ही अनुमति देगा।जनवरी में ट्रंप प्रशासन के शपथ ग्रहण तक उभरते बाजारों की मुद्राओं पर दबाव बना रह सकता है। निवेशक ट्रंप की नीतियों, खासकर व्यापार शुल्क पर स्पष्टता का इंतजार कर रहे हैं। RBI के हस्तक्षेप पर माथुर ने कहा कि यह अनुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन, केंद्रीय बैंक ज्यादा आक्रामक तरीके से हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। जहां तक विदेशी मुद्रा भंडार का संबंध है, तो वह कम हो गया है। वर्तमान में हम लगभग 657 अरब डॉलर पर हैं।
मजबूत डॉलर से क्या चुनौतियां?
मजबूत डॉलर भारत के लिए कई तरह की चुनौतियां पेश करता है। आइए, इन चुनौतियों को समझते हैं:महंगा आयात: जब डॉलर मजबूत होता है तो भारत को अमेरिका और अन्य देशों से जो सामान आयात करता है, वह अधिक महंगा पड़ता है। इसका सीधा असर महंगाई बढ़ने पर होता है, खासकर तेल और अन्य कच्चे माल के मामले में।
व्यापार घाटा बढ़ना: मजबूत डॉलर से भारत का निर्यात कम प्रतिस्पर्धी हो जाता है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
विदेशी निवेश कम होना: मजबूत डॉलर के कारण विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसे निकालते हैं, क्योंकि उन्हें अपने देश में अधिक रिटर्न मिलता है।
रुपये का मूल्य कम होना: मजबूत डॉलर के कारण रुपये का मूल्य कम हो जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता है।
कर्ज का बोझ बढ़ना: जिन कंपनियों और सरकारों ने डॉलर में कर्ज लिया है, उनके लिए कर्ज का बोझ बढ़ जाता है, क्योंकि उन्हें अब अधिक रुपये में डॉलर का भुगतान करना होता है।