लेख: 10 साल में कैसे बदली पोर्ट और शिपिंग सेक्टर की दुनिया
Updated on
04-12-2024 04:31 PM
देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत की संकल्पना प्रस्तुत की। उन्होंने आह्वान किया कि सन 2047 में, जब देश आजादी के 100 साल का जश्न मनाए, तब भारत विकसित बने। पीएम ने इसके लिए जरूरी पॉलिसी और रोडमैप भी पेश किया। देश को विकसित बनाने की यह सोच बेहद दूरदर्शी है।
इन्फ्रा पर खर्च
किसी भी देश को तरक्की करनी है, तो पहले उसे आर्थिक क्षेत्र में आगे बढ़ना होगा। आर्थिक क्षेत्र की तरक्की सीधे-सीधे जुड़ी है देश के लॉजिस्टिक्स सेक्टर से। इस बात के महत्व को समझते हुए NDA सरकार ने इंटीग्रेटेड लॉजिस्टिक्स मॉडल बनाने की शुरुआत की है। 2014 के बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट के लिए सबसे ज्यादा बजट देना शुरू किया। इससे देश में रोड, रेल, पोर्ट, हवाई अड्डे, जलमार्ग वगैरह का निर्माण तेजी से शुरू हुआ।
10 साल की उपेक्षा
आज पोर्ट और शिपिंग में एक साइलेंट रिवॉल्यूशन चल रहा है। 2004 से 2014 तक, एक दशक के दौरान सभी सेक्टर उपेक्षित रहे थे। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान हुआ पोर्ट और शिपिंग सेक्टर को। पोर्ट में शिप का वेटिंग टाइम, टर्न अराउंड टाइम, कार्गो कंजेशन टाइम आदि दुनिया के मुकाबले बहुत पिछड़ा हुआ था। दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आने वाले कार्गो जहाज के लिए पानी की जरूरी गहराई (ड्राफ्ट) उपलब्ध नहीं थी। इसके कारण शिप को पूरा भर के पोर्ट तक नहीं लाया जा सकता था। इससे शिपिंग की लागत अधिक रहती थी।
योजनाबद्ध तैयारी
साल 2014 तक ग्लोबल शिपिंग में भारत का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम हो गया था। हम कार्गो के आवागमन के लिए पूरी तरह से दूसरे देशों के जहाजों पर निर्भर थे। सरकार ने पोर्ट और शिपिंग सेक्टर को पूर्ण विकसित करने के लिए 31 जुलाई 2015 को सागरमाला प्रॉजेक्ट लॉन्च किया। यह परियोजना नई तकदीर लिख रही है। पहली बार भारत ने दुनिया की तरह सोचने की शुरुआत की। जैसे कि, दुनिया में अभी किस तरह के जहाज चल रहे हैं और भविष्य में किस तरह के चलेंगे, इसे ध्यान में रखते हुए पोर्ट पर बर्थ की लंबाई, इक्विपमेंट और पानी का ड्राफ्ट डिजाइन करना पड़ता है। कोई जहाज अगर आज शिपयार्ड में बन रहा है, तो वह अगले 6-7 बरस बाद ही उपयोग में आएगा। उस वक्त की जरूरत को ध्यान में रखते हुए अभी से योजना पर काम करना पड़ता है। पहले हमारी ऐसी योजनाबद्ध तैयारी नहीं हुआ करती थी।
पुराने कानून बदले
हमने पोर्ट और शिपिंग सेक्टर में 360 डिग्री बदलाव की सोच के आधार पर काम किया है। इस सेक्टर को वैश्विक मानकों के आधार पर आधुनिक बनाने के लिए कानूनों को नए सिरे से तैयार किया गया है। उदाहरण के तौर पर, 156 साल पुराने एडमिरैलिटी एक्ट की जगह पर एडमिरैलिटी एक्ट 2017 लाया गया। 94 साल पुराने लाइट हाउस एक्ट का स्थान एड्स टु नेविगेशन एक्ट 2021 ले चुका है। इसी तरह, 66 साल पुराने कोस्टल शिपिंग कानून की जगह कोस्टल शिपिंग बिल 2024 और मर्चेंट शिपिंग बिल 2024 भी लाया गया है। इस सेक्टर का एकमात्र बचा हुआ पुराना कानून 1908 से चला आ रहा है और अब इसे भी नया बनाने की प्रक्रिया आखिरी चरण में है। देश में 2014 तक सिर्फ 5 नैशनल वॉटर वेज थे, आज 111 हैं।
अभूतपूर्व प्रगति
आज हमारे पास ‘फ्लैग इन इंडिया इंसेंटिव पॉलिसी’ और ‘मैरीटाइम इंडिया विजन 2030’ है। कुछ आंकड़ों पर गौर कीजिए, वर्ष 2014 तक देश में सरकारी पोर्ट पर कुल कार्गो वहन की क्षमता सालाना 1400 मिलियन मीट्रिक टन थी, जो आज बढ़कर सालाना लगभग 2700 मिलियन मीट्रिक टन हो गई है। पहले जब शिप भारत के बंदरगाहों पर आता था, तब उसे बर्थ मिलने में औसत 36 घंटे का समय लगता था। अब 19 घंटे लगते हैं। कंटेनर का टर्न अराउंड टाइम 42 घंटे से घटकर 30 घंटे हो गया है। वहीं, कंटेनर ड्वेलिंग टाइम 91 घंटे से 45 घंटे पर आ चुका है। दुनिया के कुल सी-फेरर में 2014 तक भारत की हिस्सेदारी 5.9% थी, यह बढ़कर अभी 15% हो गई है। यानी, भारत में पहले करीब एक लाख सी-फेरर हुआ करते थे, उनकी संख्या आज लगभग 3 लाख है। संक्षेप में कहें तो पोर्ट और शिपिंग से जुड़े सभी पहलू पर देश ने अभूतपूर्व प्रगति की है।
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