राज्यों और केंद्र में बढ़ सकती है फंड की तकरार, झारखंड ने दी कानूनी कदम उठाने की चेतावनी
Updated on
02-12-2024 04:47 PM
नई दिल्ली: कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल, झारखंड… घटने के बजाय यह लिस्ट लंबी होती जा रही है, मसला है पैसे का। कुछ राज्यों का दावा है कि केंद्रीय करों में उनका जो हिस्सा बनता है, उतना पैसा उन्हें नहीं दिया जा रहा। वहीं, झारखंड जैसे राज्य कह रहे हैं कि केंद्र सरकार कोयला खनन से जुड़े उसके 1.36 लाख करोड़ रुपये रिफंड करे, वरना कानूनी कदम उठाए जाएंगे। अर्थव्यवस्था में सुस्ती और राज्यों की कमजोर माली हालत के बीच यह तकरार और बढ़ सकती है।
राज्यों का हाल यह है कि मार्च 2024 तक कर्ज सहित उनकी देनदारियां उनके सकल घरेलू उत्पाद के 28% के करीब हो चुकी थीं। इस देनदारी पर ब्याज खर्च आने वाले वर्षों में बढ़ेगा। वित्तीय अनुशासन पर बनी एन के सिंह कमेटी ने 2017 में राय दी थी कि देनदारियां स्टेट जीडीपी के 20% से अधिक नहीं होनी चाहिए। 2003-04 में करीब 32% रहा यह अनुपात 2014-15 में लगभग 22% पर आ गया था। लेकिन हाल के वर्षों में यह फिर बढ़ा है।
क्यों हो रही है हालत पतली
राज्यों की माली हालत के बारे में PRS लेजिस्टेटिव रिसर्च की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 19 राज्यों की देनदारियां उनके जीडीपी के 30% से अधिक हो चुकी हैं। हालिया चुनावी राज्यों महाराष्ट्र में यह 19% और झारखंड में 30% पर है। इसके पीछे कोविड के दौरान खर्च चलाने की खातिर लिए गए उधार के अलावा राज्यों की डिस्कॉम्स के घाटे, कृषि कर्ज माफी और डायरेक्ट कैश ट्रांसफर की योजनाओं का बड़ा हाथ है। 2024-25 में महाराष्ट्र और झारखंड सहित 10 राज्यों ने महिलाओं के लिए कैश ट्रांसफर स्कीमों में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने का प्रावधान अपने बजट में किया है। वहीं, इस वित्त वर्ष में महाराष्ट्र, आंध्र, हिमाचल, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, पंजाब, राजस्थान और तमिलनाडु सहित 11 राज्यों ने बजट में रेवेन्यू डेफिसिट का अनुमान दिया है। PRS की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में जो भी सरकारी खर्च होता है, उसमें राज्यों का हिस्सा करीब 60% है, लेकिन राजस्व जुटाने और किस चीज पर कितना खर्च किया जाए, इसके बारे में उनके पास सीमित अधिकार हैं। संविधान टैक्स लगाने के मामले में केंद्र को ज्यादा अधिकार देता है।
बैठक का बहिष्कार
2024-25 में राज्यों के राजस्व का करीब 42% हिस्सा केंद्र सरकार से आने का अनुमान है। लेकिन जैसा हाल दिख रहा है, उसमें लगता नहीं कि इतने भर से काम चल जाएगा। फंड पर तनातनी के चलते तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन ने नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार कर चुके हैं और पंजाब के सीएम भगवंत मान ने भी केंद्र पर राज्य का फंड रोकने का आरोप लगाया है। वरिष्ठ अर्थशास्त्री अभिजीत मुखोपाध्याय ने कहा, ‘राज्यों को अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने पर जोर देना होगा, साथ ही केंद्र सरकार को उनकी मदद के लिए हाथ भी बढ़ाना होगा। ऐसा नहीं होने पर आने वाले समय में फंड के लिए तकरार बढ़ेगी, खासतौर से विपक्ष शासित राज्यों की ओर से विरोध तेज होगा।’
मिलजुलकर खोजना होगा रास्ता
पिछले दो दशकों में केंद्र के स्तर पर सेस लगाने का चलन बढ़ा है। केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी वित्त आयोगों की सिफारिशों के आधार पर तय की जाती है, लेकिन सेस में राज्यों को कुछ नहीं मिलता। वहीं, राज्य जीएसटी के चलते अपने राजस्व स्रोत घटने की शिकायतें करते रहे हैं। कैश ट्रांसफर योजनाओं में भी संयम की जरूरत है। केंद्र और राज्यों को मिलजुलकर रास्ता निकालना होगा।
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