सिंधु जल संधि रुकने से उत्तरी कश्मीर के बारामुला, बांदीपोरा और दक्षिण कश्मीर के श्रीनगर, अनंतनाग, पुलवामा और कुलगाम के गांवों के किसान खुश हैं। उनका कहना है कि 38 साल बाद भारत को तुलबुल बैराज का काम शुरू करने का मौका मिला है।
भारत ने इसका काम 1984 में शुरू किया था। इससे दक्षिण से उत्तरी कश्मीर तक 100 KM का नौवहन कॉरिडोर बनता और कश्मीर की लाइफलाइन झेलम का पानी रुकता और नदी में कभी सूखा नहीं पड़ता। एक लाख एकड़ जमीन सिंचित रहती, लेकिन 1987 में पाक ने इसे सिंधु जल संधि का उल्लंघन बताते हुए काम रुकवा दिया था।
अब हालात बदले हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी गुरुवार को संकेत दिए कि जब सिंधु संधि निलंबित हो चुकी है तो तुलबुल प्रोजेक्ट फिर शुरू करना चाहिए। इससे सर्दियों में 24 घंटे बिजली मिलेगी।
महबूबा बोलीं- उमर का बयान भड़काऊ
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर के उमर अब्दुल्ला मांग को गंभीर और भड़काऊ बताया है। उन्होंने कहा कि भारत-पाकिस्तान के बीच हाल ही में युद्ध जैसे हालात बने थे और कश्मीर को इसकी सबसे ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी, निर्दोष लोगों की जान गई, तबाही मची और लोगों को भारी कष्ट हुआ। ऐसे वक्त में इस तरह का बयान गैर-जिम्मेदाराना है।
महबूबा ने कहा कि कश्मीर के लोगों को भी उतनी ही शांति और राहत चाहिए जितनी देश के बाकी लोगों को मिलती है। उन्होंने पानी जैसे जरूरी संसाधन को हथियार की तरह इस्तेमाल करने को अमानवीय और खतरनाक बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे मामला दो देशों के बीच का न रहकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जा सकता है।
वुलर झील के मुहाने पर है तुलबुल प्रोजेक्ट
तुलबुल प्रोजेक्ट झेलम नदी पर वुलर झील के मुहाने पर 440 फीट लंबा नौवहन लॉक-कम-नियंत्रण ढांचा था। यहां झेलम का पानी रोकने के लिए 3 लाख बिलियन क्यूबिक मीटर की भंडारण क्षमता तैयार की गई थी।
तुलबुल प्रोजेक्ट इस वक्त ₹20 करोड़ खर्च हुए थे, लेकिन झेलम में बार-बार बाढ़ आने से निर्माण मिट्टी में दब गए। इससे झेलम का पानी कश्मीर में नहीं रुक सका और पाकिस्तान बहकर जाता रहा।
पहलगाम आतंकी हमले के अगले दिन 23 अप्रैल को PM मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी यानी CCS की बैठक हुई थी। इसमें पाकिस्तान के खिलाफ 5 बड़े फैसले हुए थे। इनमें सबसे अहम था- सिंधु जल समझौते को स्थगित करना।