'स्कूली पाठ्यक्रम में यह जोड़ा जाए कि कौन सा खाना, दिनचर्या या आदत किस बीमारी का कारण बन सकता है और उससे कैसे बचा जा सकता है। बच्चों को यह समझाना होगा कि स्वास्थ्य की जिम्मेदारी खुद उनकी है, सिर्फ डॉक्टर की नहीं। साथ ही माता-पिता और शिक्षकों को भी यह जिम्मेदारी लेनी होगी।'
स्कूलों में खेलों का समय घटकर 5% रह गया डॉ. शिव कुमार सरीन बुधवार को प्रदेशव्यापी स्वस्थ यकृत (लिवर) मिशन कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर भोपाल पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि हमने राज्यपाल मंगु भाई पटेल और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से आग्रह किया है कि स्कूली पाठ्यक्रम में खाना और दिनचर्या को जोड़ा जाना चाहिए।
डॉ. सरीन ने बताया कि पहले स्कूलों में पढ़ाई का 30% समय खेलों को दिया जाता था, जो अब घटकर 5% रह गया है, जबकि मोटापा और फैटी लिवर की बढ़ती समस्या को देखते हुए शारीरिक गतिविधि बढ़ाना जरूरी है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) की एमडी डॉ. सलोनी सिडाना से भी इस विषय पर चर्चा कर योजनाएं बनाने की बात कही।
यह आंकड़ा पांच साल में 22% तक पहुंच सकता है। जिसकी मुख्य वजह है बिगड़ती जीवनशैली और खानपान। उन्होंने चेतावनी दी कि यही रुझान बच्चों में फैटी लिवर जैसी बीमारियों को जन्म दे रहा है। इसलिए हेल्थ को केवल डॉक्टर का विषय नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी बनाना होगा।
10 फीसदी से ज्यादा फैट अच्छा नहीं डॉ. सरीन ने कहा कि लिवर में फैट आने के तीन प्रमुख कारण है। जिसमें पहला शराब का सेवन और दूसरा खराब खान पान सबसे आम हैं। इसके अलावा जीन भी एक बड़ा फैक्टर हैं। यदि किसी को वसीयत में फैटी लिवर की समस्या मिली हो तो उनमें जरा सा खाने से भी फैटी लिवर की समस्या हो सकती है।
ऐसे जीन्स वालों में मोटापा सबसे पहला इंडिकेशन हैं। हालांकि किसी भी तरह से लिवर में फैट हो, यदि 10% से ज्यादा है तो अच्छा नहीं है। ऐसे लिवर को ट्रांसप्लांट के लिए अनफिट माना जाता है। इससे सिरोसिस, क्रोनिक किडनी डिजीज समेत कई अन्य बीमारी हो सकती है।