सुप्रीम कोर्ट में नए वक्फ कानून के खिलाफ सुनवाई आज:विरोध में 70 से ज्यादा याचिकाएं

Updated on 16-04-2025 01:15 PM

सुप्रीम कोर्ट आज नए वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। CJI संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच दोपहर 2 बजे से वक्फ बोर्ड के खिलाफ और समर्थन में दायर याचिकाओं पर दलीलें सुनेगी।

भले ही CJI की अध्यक्षता वाली बेंच में 10 याचिकाएं लिस्ट की गई हैं, लेकिन धार्मिक संस्थानों, सांसदों, राजनीतिक दलों, राज्यों को मिलाकर वक्फ कानून के खिलाफ 70 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं।

हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और असम सरकार ने नए वक्फ कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है।

जैन और सिख याचिकाकर्ताओं ने दी चुनौती

 सिख दया सिंह ने भी वक्फ कानून के खिलाफ याचिका लगाई है। उन्होंने कहा कि नए कानून से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ। याचिका में कहा गया कि गैर-मुस्लिमों को वक्फ में दान से रोकना संपत्ति पर उनके अधिकार, धार्मिक अभिव्यक्ति और आत्मा की आवाज को गलत तरीके से रोकना है।

एडवोकेट हरि शंकर जैन ने वक्फ अधिनियम 1995 को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की है। इसमें कहा गया कि मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को सरकारी भूमि और हिंदू धार्मिक संपत्तियों पर अवैध रूप से कब्जा करने की अनुमति है। यह मुसलमानों को अनुचित लाभ पहुंचाता है। हिंदुओं के धार्मिक और संपत्ति अधिकारों को खतरे में डालता है।

बता दें कि संसद से 4 अप्रैल को पारित हुए वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी। सरकार ने 8 अप्रैल से अधिनियम के लागू होने की अधिसूचना जारी की। तब से इसका लगातार विरोध हो रहा है।

10 याचिकाएं और उनमें दी गई दलील

सुप्रीम कोर्ट में जिन दस याचिकाओं पर सुनवाई होनी है, उन्हें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, दिल्ली के AAP विधायक अमानतुल्ला खान, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी, ऑल केरल जमीयतुल उलेमा, अंजुम कादरी, तैय्यब खान सलमानी, मोहम्मद शफी, मोहम्मद फजलुर्रहीम और राजद सांसद मनोज कुमार झा ने दायर किया है।

पर्सनल लॉ बोर्ड- 87 दिन तक करेगा प्रदर्शन

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने कानून के खिलाफ 'वक्फ बचाव अभियान' शुरू किया है। इसका पहला फेज 11 अप्रैल से शुरू होकर 7 जुलाई यानी 87 दिन तक चलेगा। साथ ही वक्फ कानून के विरोध में 1 करोड़ हस्ताक्षर कराए जाएंगे, जो PM मोदी को भेजे जाएंगे। इसके बाद अगले फेज की रणनीति तय की जाएगी।

वक्फ होता क्या है

'वक्फ' अरबी भाषा के शब्द 'वकुफा' से बना है, जिसका अर्थ होता है- ठहरना, रोकना या निषिद्ध करना। 27 देशों के वक्फ की संपत्तियों पर काम करने वाली संस्था ‘औकाफ प्रॉपर्टीज इन्वेस्टमेंट फंड’ (AIPF) के मुताबिक, कानूनी शब्दों में इस्लाम में कोई व्यक्ति जब धार्मिक वजहों से या ईश्वर के नाम पर अपनी प्रॉपर्टी दान करता है तो इसे प्रॉपर्टी वक्फ कर देना कहते हैं। फिर वो चाहे कुछ रुपए की रकम हो या बेशकीमती हीरे-जवाहरात से भरी हुई एक पूरी इमारत।

अमूमन ऐसी प्रॉपर्टीज को ‘अल्लाह की संपत्ति’ कहा जाता है। अपनी प्रॉपर्टी वक्फ को देने वाला इंसान ‘वकिफा’ कहलाता है। वकिफा ये शर्त रख सकता है कि उसकी संपत्ति से होने वाली आमदनी सिर्फ पढ़ाई पर या अस्पतालों पर ही खर्च हो।

इन संपत्तियों को बेचा या धर्म के अलावा किसी और मकसद के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। पैगंबर मोहम्मद के समय खजूर के 600 पेड़ों का एक बाग वक्फ का सबसे पहला उदाहरण माना जाता है। इससे होने वाली कमाई से मदीना के गरीबों की मदद की जाती थी।

वक्फ बोर्ड कैसे काम करता रहा है

भारत में वक्फ की परंपरा का इतिहास 12वीं सदी में दिल्ली सल्तनत के समय से जुड़ा है। भारत में ज्यादातर वक्फ प्रॉपर्टीज पर मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान और यतीमखाने यानी मुस्लिम बच्चों के लिए अनाथालय खुले हैं। कई प्रॉपर्टीज खाली पड़ी हैं या फिर उन पर अवैध कब्जा कर लिया गया है।

आजादी के बाद 1954 में वक्फ एक्ट बना, 1995 में कुछ संशोधनों के साथ नया वक्फ एक्ट बना। 2013 में भी कई बदलाव हुए। इसके तहत वक्फ बोर्ड नाम का एक ट्रस्ट बनाया गया। इसी के साथ इस्लाम से जुड़ी सभी धार्मिक संपत्ति वक्फ बोर्ड के हिस्से आ गईं।

लगभग सभी मुस्लिम धर्मस्थल वक्फ बोर्ड एक्ट के तहत आते हैं, लेकिन कुछ अपवाद भी हैं। मसलन, ये कानून अजमेर शरीफ दरगाह पर लागू नहीं होता। इसके मैनेजमेंट के लिए दरगाह ख्वाजा साहिब एक्ट 1955 बना हुआ है।

मौजूदा वक्फ एक्ट के तहत वक्फ संपत्तियों का कामकाज देखने के लिए बनी सेंट्रल वक्फ काउंसिल भारत सरकार को वक्फ से जुड़े मुद्दों पर सलाह देती है। इसके अलावा राज्यों में दो 2 बोर्ड्स होते हैं- सुन्नी वक्फ बोर्ड और शिया वक्फ बोर्ड।

इन बोर्डों का एक चेयरमैन होता है, दो सदस्य राज्य सरकार तय करती है। इसमें मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम एडवोकेट और मुस्लिम विद्वान शामिल होते हैं। प्रॉपर्टीज का लेखा-जोखा रखने के लिए बोर्ड का एक सर्वे कमिश्नर भी होता है। सभी मेंबर्स का कार्यकाल 5 साल का होता है। राज्य सरकार डिप्टी सेक्रेटरी रैंक के IAS ऑफिसर को बोर्ड का CEO बनाती है। ये बोर्ड के फैसलों को लागू करता है।

वक्फ से जुड़े मामलों के लिए जो कोर्ट बना है, उसे वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल कहते हैं।



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